अंकिला देव संतद्वारीं । भिक्षा मागें तो निर्धारीं ॥

अंकिला देव संतद्वारीं । भिक्षा मागें तो निर्धारीं ॥१॥
मज द्याहो प्रेमभिक्षा । देव बोले तया प्रत्यक्षा ॥२॥
नाम गाणें हेंचि दक्ष । एका जनार्दनीं प्रत्यक्ष ॥३॥

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